नहमदुहु व नुसल्ली अ़ला रसूलिहील करीम अम्माबाअद। फअऊज़ु बिल्लाहि मिन्नशैतानिर्रजीम, बिस्मिल्लाहिर्रहमा निर्रहीम।
सारी तारीफें सिर्फ अल्लाह के लिए और दुरुद-ओ-सलाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सलल्लाहु अलैहि व सल्लम पर और आपके असहाब रज़ियल्लाह अन्हूम अज़मईन पर और अहले बैत पर।
रब्बिश रहली सदरी- ऐ मेरे रब मेरा सीना खोल दे,
व यस्सिरली अमरी- और मेरे काम को आसान फरमा दे,
व अहलुल उक़दतम्मिलिसानी- और मेरी ज़बान की गिरह खोल दे,
यफक़हु क़वली- ताकि लोग मेरी बात को आसानी से समझ सके। ( सूरह ताहा-25, 26, 27, और 28)
बिस्मिल्लाहिर्रहमा निर्रहीम
अल्लाह ताअला की नाज़िल कर्दा किताबों में क़ुरआने करीम वोह ज़िन्दा जावेद मुअजज़ा है जो तक़रीबन साढ़े चैदह सौ सालों से दुनिया-ए-आलम की हिदायत और रहनुमाई फरमा रहा है।
अल्लाह जल्ले जलालहु के इस कलाम ने बेशुमार लोगों की ज़िन्दगीयों में इन्क़लाब बरपा किया है, अनगिनत लोगों को इन्सानी ज़िन्दगी का मक़सद और ज़िन्दगी गुज़ारने का सलीक़ा सीखाया, बहुत से लोगों की इसलाह-ओ-तरबीयत कर के उन्हें सिराते मुस्तक़ीम पर रवां दवां किया और बेहद-ओ-हिसाब अफराद की ज़हनसाज़ी कर के उन्हें हिदायत-ओ-कामरानी से सरफराज़ किया ओर सिर्फ यहीं तक नहीं बल्कि तर्जे मआशरत की तालीम, रहन सहन का सलीक़ा, वालिदैन के साथ हुस्ने सुलूक, पड़ोसियों की अहमीयत ,रिश्तेदार और अज़ीज़-ओ-अक़ारिब के साथ सिलाह रहमी, विरासत की तक़सीम, उख्वत और भाईचारा और इन जैसे ला-तादाद अहकामात से रुबरु करवाया और शनासाई करवायी।
क़ुरआन ने जो अहकामात दिए और बताए हैं उनकी तफसीलो-तशरीह हुज़ूर सरवरे कायनात अहमदे मुजतबा मुहम्मद मुस्तफा सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अ़लम-नशरह( वाज़ह करना) (क्या हमने नहीं खोला) की तरह बयान फरमाई है और जिन पर अमल कर के इन्सान हक़ीक़ी तौर पर इन्सान कहलाने के हक़दार बना है।
अल्लाह ताअला के इस मुअजज़ाना कलाम पर और इस में मौजूद वसीअ और अमीक़ (फराख और कामिल और गहरे ) गोशों पर उलमा-ए-उम्मत ने तफासीर की सूरत में ला तादाद किताबें लिख कर उम्मते मुसलमां पर बहुत बड़ा अहसान किया है।
क़ुरआन हकीम बिलाशुुबा खुदा-ए-वहदहू ला शरीक का पाक कलाम है, जो इसके आखरी रसूल सरदारे अम्बिया, सरवरे क़ायनात हज़रत मुहम्मद सल. पर नाज़िल हुआ। इसलिए इसे अल्लाह का कलाम और मुकम्मल किताबे हयात होने का शर्फ हासिल है। अल्लाह ने इस ज़िन्दा मुअजज़े को अज़ीम कहा है और रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसे ख़ैरुल हदीस के लक़ब से याद फरमाया है।
यह सलिसिला दौरे नुबूवत से लेकर आज तक और आगे भी जारी व सारी रहेगा। इन्शाअल्लाह।
क़ुरआन ने अनगिनत ज़िन्दगियों में अज़ीम इंक़लाब बरपा किया, इन्सानीयत को जिहालत की तारीकियों से बाहर निकाल कर इल्मो आगही के नूर से मुन्नवर फरमाया। जिस्म और रुह को ताज़गी बख्शने वाले इस कलामे मुक़द्दस ने न सिर्फ पंजगाना नमाजों और मुख्तलिफ अवक़ात में तिलावत से लोगों को इतमीनाने क़ल्ब अता किया, बल्कि निज़ामे तालीम, निज़ामे अद्ल, निज़ामे सियासत-ओ-हुकूमत और मआशरत, ग़र्ज़ ज़िन्दगी के हर शौबे में रहनुमाई अता फरमाई है।
तवारीख़ गवाह है कि जब भी राहे गुमकर्दा (जो राह भूले हुए होंते हैं ) मखलूके खुदा ने क़ुरआन से रहनुमाई हासिल की है तब-तब कामियाबियों ने उनके क़दम चूमे है। दीन-ओ-दुनिया की भलाईयां इसका मुक़द्दर बन गयी है।
इस तरह क़ुरआने हकीम ने यह साबित कर दिया है कि वोह हर दौर की किताब है, हर दौर का दस्तूर है, और हर दौर का निज़ामे हयात है। बिलाशुबा यह आंकिताब ज़िन्दा क़ुरआने हकीम है। क़ुरआने पाक के अस्मा-ओ-अल्क़ाब तादाद के लिहाज़ से बाज़ उलैमा ने 55 और बाज़ ने 90 से ज़ायद अस्मा-ओ-अल्क़ाब का ज़िक्र किया है।
क़ुरआने करीम ने ख़ुद अपने लिए इस्मे इल्म के तौर पर पांच नाम गिनवाए हैं-
अल-क़ुरआन
अल-फुरक़ान
अजि़्ज़क्र
अल-किताब और
अत्तन्ज़ील।
क़ुरआन पाक का सबसे मशहूर नाम क़ुरआन 61 मक़ामात पर आया है।
क़ुरआन के माअनी यकरन यकरा से निकला है, जिसके लुग़वी माअना है जमा करना। यह लफ्ज़ पढ़ने के माअनों में इसलिए इस्तेमाल होने लगा कि इसमें लफ्ज़ों को जमा किया जाता है। मसदर क़िरअ के अलावा क़ुरआन भी आता है।
क़ुरआने मजीद का नाम मुबीन भी है जो पच्चीसवें पारे की सुरह अज़्ज़ुखरफ की पहली आयत हामीम अल किताबुल मुबीन में आया है।
अठारहवें पारे की पहली आयत नज़मुल फुरक़ान अ़ला अब्दिही में क़ुरआन को फुरक़ान कहा गया है।
बनी इस्राईल पारा 15 की आयत में क़ुरआन पाक का नाम शिफा है।
सूरह अन्निसा की चौथी आयत में क़ुरआन को व अन्ज़लना इलैकुम नूररुम्मुबीना यानी नूर कहा गया है।
सूरह यूनुस आयत नम्बर 57 में व हुदन व रहमतुल्लिल मुमीनीन कहा गया है।
क़ुरआन मजीद का अल फुरकान अल-करीम सुरह वाक़िआ की आयत 77 में – इन्नहुल क़ुरआनुनकरीम आया है।
सुरतुल क़सस की आयत नम्बर 48 में क़ुरआन पाक को हक़ का नाम दिया है, सुरह रअद आयत नम्बर-1, और हामीम सज्दह आयत नम्बर 33 में यही नाम हक़ आया है।
क़ुरआन पाक के नामों को अलग-अलग मक़ामात पर कई नामों से पुकारा गया है ,जैसे- किताब, हुदा, फुरक़ान, मुबीनो मुसद्दक़,बुशरा, नुज़ूल बिलहक़, ज़िक्र, मुबारक, रहमत, हिकमत, शिफा, इबरत, अल-अज़ीम, अज़ीज़, मीज़ान, इमाम, अरबी, अत्तन्ज़ील, क़ुरआन, नूर, नसीहत, तज़करा, हदीस, वही, बशीर, तब्सरा, नज़ीर और हबलुल्लाह( अल्लाह की रस्सी)।
क़ुरआन का हिफाज़त का ज़िम्मा खुद अल्लाह ने लिया है
हमने इस ज़िक्र को नाज़िल किया है और हम ही इसकी हिफाज़त करने वाले हैं।
सुरतुल बुरुज में आयत नम्बर 22 में है- बल्कि यह क़ुरआन मजीद है लोहे महफूज़ में मौजूद है।
क़ुरआन का नुज़ूल दो मरतबा हुआ, लोहे महफूज़ से दो मरतबा नाज़िल हुआ है, और एक मरतबा आसमानी दुनिया बैतुल इज़्ज़त में पूरा हुआ और फिर थोड़ा-थोड़ा कर के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि व सल्लम पर मुकम्मल नाज़िल हुआ।
सुरतुल मुज़्ज़मिल आयत नम्बर 5 इन्ना सनुल्क़ी अलैक क़ौलन सक़ीला- हम तुम पर एक भारी कलाम नाज़िल करने वाले हैं। यह वोह भारी कलाम है जिसके मुतहमुल ज़मीन और आसमान नहीं हो सके।
सुरतुल हश्र की आयत नम्बर 21 में क़ुरआन की अज़मत इस तरह बयान फरमाई है – लव अन्ज़ल्ना हाज़ल क़ुरआन अ़ला जबलिल ल र अयतहू खाशिअम्मुत सद्दिअम्मिन खशियतिल्लाह, अगर हमने यह क़ुरआन किसी पहाड़ पर भी उतार दिया होता तो, तुम देखते कि वोह अल्लाह के खौफ से दबा जा रहा है और फटा पड़ता है
व तिलकल अमसालु नज़रिबुहा लिन्नासि लअल्लहुम यतफक्करुन- ये मिसालें हम लागों के सामने इसलिए बयान करते हैं कि वोह अपनी हालत पर ग़ौर करें।
क़ुरआन का मौज़ू इन्सान है क्यों कि इन्सानी ज़िन्दगी के हर पहलू पर बहस करता है।
पारा 6 सुरतुल मायदा आयत नम्बर 15 में फरमाया गया है-या अहलल किताबि क़दजाअकुम रसूलुना युबय्यिनु लकुम कसीरममिम्मा कुन्तुम तुखफून मिनलकिताबि यअफूअ़न कसीर-ऐ अहले किताब! हमारा रसूल तुम्हारे पास आ गया है जो किताबे इलाही की बहुत सी उन बातों को तुम्हारे सामने खोल रहा है, जिन पर तुम पर्दा डाला करते थे, और बहुत सी बातों को दर गुज़र कर जाया करते थे।
क़द जाअकुम मिन्नल्लाहि नूरुंव्व किताबुम्मुबीन -तुम्हारे पास अल्लाह की तरफ से रोशनी आ गयी है और एक ऐसी हक़नुमा किताब जो हक़ को वाजेह करने वाली है।
रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि दो चीज़ों में रश्क (हसद) जायज़ है। जिन में से एक यह है कि किसी को अल्लाह ताअला ने क़ुरआनी उलूम से नवाज़ा हो और वो रात दिन इसमें ग़र्क़ रहे।
रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- मेरी उम्मत की सबसे अफज़ल तरीन इबादत तिलावते क़ुरआने मजीद है।
आप सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया-ऐ क़ुरआन वालो! क़ुरआन को इस तरह से पढ़ो, जिस तरह से उसके पढ़ने का हक़ है। रात-दिन पढ़ो, उसे फैलाओ, उसके मज़ामीन पर ग़ौर करो, ताकि तुम कामियाब रहो।
इसका मतलब है कि क़ुरआन पर इमान लाना, इसकी तिलावत करना,इस पर ग़ौरो खोज़ करना, इस पर अमल करना, और इसको दूसरों तक पहुंचाना, इसलिए कि क़ुरआन सिर्फ सवाब की किताब नहीं बल्कि यह निज़ामे हयात है, वे ऑफ लाईफ और सम्पूर्ण जीवन व्यवस्था है।
आप सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह भी फरमाया-जो क़ुरआन मजीद को तीन दिन से कम वक़्त में खत्म करेगा वोह उसे कुछ नहीं समझेगा। एक और मौक़े पर फरमाया-तीन दिन से कम वक़्त में क़ुरआन खत्म न करो।
रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अबु-दाऊद में क़ुरआन पर अमल नहीं करने वालों के लिए फरमाया – ऐसी क़ौम पैदा होगी जो क़ुरआन मजीद को तीर की तरह सीधा कर देगी, मगर उसका मक़सद सवाबे आखिरत नहीं होगा बल्कि दुनिया होगी। एक दूसरी रिवायत में है कि क़ुरआन उनके हलक़ से नीचे न उतरेगा यानी वोह लोग इस पर अमल नहीं करेंगे।
सहीह बुखारी और मुस्लिम में रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ुरआन को मुअजज़ा क़रार देते हुए फरमाया-अम्बिया में से हर एक नबी को मुअजज़ात में से सिर्फ इतना दिया गया है कि जितना कि उस पर इन्सान ईमान ला सके और मुझ को वहीह ’’क़ुरआने पाक’’ का मुअजज़ा दिया गया है जो अल्लाह ने मुझ पर नाज़िल किया है। इसलिए मुझे यक़ीन है कि क़यामत के दिन मेरे पैरोकारों की तादाद तमाम अम्बिया से ज़ियादा होगी।
मिश्क़ात और तिरमिज़ी शरीफ में अल्लाह के रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- जिसका क़ौल क़ुरआन के मुताबिक़ होगा वही सच्चा होगा। जो इस पर आमिल होगा, अज्र का मुस्तहिक़ होगा। जो इसके मुताबिक़ फैसला करेगा वोह आदिल होगा। जो इसकी तरफ दावत देगा वोह सीधी राह की तरफ हिदायत पाएगा। रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ज़ोर देकर फरमाया कि इन बातों को पल्ले बांध लो।
तिरमिज़ी की एक और हदीस में रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया -जो शख्स क़ुरआन की हराम कर्दा चीज़ों को हलाल समझे उसका क़ुरआन पर ईमान ही नहीं।
बुखारी, मिश्क़ात और मुस्लिम में रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि जो शख्स क़ुरआन अटक-अटक कर पढ़ता है जबकि उसके लिए पढ़ना मुश्किल है, उसके लिए दोहरा सवाब है।
रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ुरआन की अज़मत के बारे में फरमाया है कि बेशक सबसे अच्छा कलाम अल्लाह का कलाम है । हदीस के अल्फाज़ हैं-इन्न खैरुल हदीस किताबुल्लाह।
एक जगह बहक़ी फी शौबुल ईमान में रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया-क़ुरआन को हिफ्ज़ बग़ैर देखे पढ़ना हज़ार दर्जा सवाब रखता है और क़ुरआन पाक को देख कर पढ़ना दो हज़ार दर्जे तक सवाब बढ़ जाता है।
तिरमिज़ी की एक हदीस में रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया-कि क़ुरआन हर ज़माने के फितनों से बचाने वाला है।
रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि सुरतुल बक़रह की आखरी दो आयतों की तिलावत करेगा वोह उसके लिए काफी होगी।
आयत नम्बर 285-आमनर्रसूलु बिमा उनज़िल इलैहि मिर्रब्बिही वल मुअमिनून कुल्लुन आमन बिल्लाहि व मलाइकतिही व कुतुबिही व रुसूलिही ला नुफर्रिक़ु बयन अहदिमिर्रुसुलिही व क़ालू समिअना व तअना ग़ुफरानक रब्बना व इलैकल मसीर।
रसूल उस हिदायत पर इमान लाया है जो उसके रब्ब की तरफ से उस पर नाज़िल हुई है और जो लोग इस रसूल के मानने वाले हैं उन्होंने भी इस हिदायत को दिल से तसलीम कर लिया है। ये सब अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों को मानते हैं और उनका क़ौल यह है कि ’’ हम अल्लाह के रसूलों को एक दूसरे से अलग नहीं करते, हमने हुक्म सुना और इताअत क़ुबूल की। मालिक! हम तुझ से खता बख्शी के तालिब हैं और हमें तेरी ही तरफ पलटना है।
आयत नम्बर 286-ला युकल्लि फुल्लाहु नफसन इल्लावुसअहा लहा मा कसबत व अलैहा मकतसबत। रब्बना ला तुअखिज़्नाइन नसीना अव अख्ताना , रब्बना वला तहम्मिल अलैना इसरन कमा हमलतहू अलल्लज़ीन मिन क़ब्लिना वला तुहम्मिलना मा ला ताक़त लना बिही, वअफु अन्ना, वग़फिर लना व रहमना अन्त मौलाना फन्सुरना अलल क़ौमिल काफिरीन।
अल्लाह किसी मुतनफ्फिस(जानदार) पर उसकी मक़दुरत(ताक़त) से बढ़कर ज़िम्मेदारी का बोझ नहीं डालता। हर शख्स ने जो नेकी कमाई है, उसका फल उसी के लिए है और जो बदी समेटी है, इसका वबाल इसी पर है। ईमान लाने वालो! तुम यूं दुआ किया करो’ ऐ हमारे रब्ब! हमसे भूल चूक में जो क़ुसूर हो जाएं, उन पर गिरफ्त न फरमा, मालिक! हम पर वोह बोझ न डाल, जो तू ने हम से पहले लोगों पर डाले थे। परवरदिगार! जिस भार को उठाने की ताक़त हम में नहीं है वोह हम पर न रख। हमारे साथ नरमी फरमा, हम से दरगुज़र फरमा, हम पर रहम फरमा, तू हमारा मौला है, काफिरों के मुक़ाबले में हमारी मदद फरमा।
आप सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह भी फरमाया कि सुरह बक़रह की ये आखरी आयतें मुझे अर्शे अज़ीम के नीचे जो खज़ाना है उससे अता फरमाइ गई और यह वोह इनाम है जो किसी नबी को नहीं दिया गया।
रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि सुरह अखलास क़ुरआन का एक तिहाई, सुरह अल-फातिहा को दो तिहाई, और जिसने सुरह अल-फातिहा पढ़ी गौया उसने तौरैत, ज़बूर, इन्ज़ील, और क़ुरआन को पढ़ा।
आप सलल्लाहु अलैहि व सल्लम को अर्श के खास खज़ाने से जो चार चीज़ें अता फरमाई गई वोह ये हैं-सुरह अल-फातिहा, आयतुल कुर्सी, सुरह बक़रह की आखरी दो आयते करीमा और सुरह कौसर।
क़ुरआन की अहमीयत
क़ुरआन हकीम की इसी अहमीयत और इन्हीं मुस्लिमा हक़ाइक़ के पेशे नज़र इसकी तारीफो तौसीफ उलूमो अफकार, नज़रीयातो अक़ाईद, और माअनी व मफहूम पर लाखों किताबें लिखी जा चुकी है और क़यामत तक लिखी जाती रहेंगी। यह क़ुरआन का एक और बहुत बड़ा ऐजाज़ है कि क़ुरआनी उलूम का नए से नया पहलू सामने आता है। क़ुरआन मालूमात का इस क़दर ज़खीरा है कि इनका मुकम्मल अहाता मुमकिन ही नहीं। बिलाशुबा क़ुरआन का दावा है कि क़ायनात की हर चीज़ का ज़िक्र इस मुकद्दस किताब में है।
क़ुरआन ही की बदौलत क़ुरआने उलूम का खज़ाना क़ुरआन और जदीद तहक़ीक़, तख्लीक़े अर्ज़ो समा, इल्मे साइंस, तिब्ब। क़ुरआन ही की वजह से मुश्रीकीन, मुनाफिकीन, मुअमिनीन में क्या इम्तियाज़ है की जानकारी हासिल हुई । माहौलियात, नफसियात, सहाफत, इबादत, सियासत, हुकूमत, मआशरत की तमीज़ हमें नसीब हुई।
अल्लाह ताअला ने इन्सान को पैदा कर के ऐसे ही नहीं छोड़ दिया बल्कि उसको सही और ग़लत की तमीज़ और ज़िन्दगी बसर करने का तरीक़ा बताने के लिए उसे क़ुरआन जैसी नायाब और अज़ीम किताब नाज़िल फरमा कर हिदायत बख्श कर रहम फरमाया। और उस पर चलने का हुक्म भी फरमाया और साफ कहा गया कि जो उसके रास्ते पर नहीं चलेगा वह गुमराह हो जाएगा।
क़ुरआन जो एक तरफ तो इन्सान को यह हुक्म देता है कि वोह अपने ख़ालिक़ और परवरदिगार की, जो उसका हक़ीक़ी मालिक है , की बंदगी और इबादत करे और दूसरी तरफ यह हिदायत करता है कि तमाम बनी नुए इन्सान एक ही मां बाप की औलाद होने की वजह से आपस में बहन भाई का रिश्ता रखते हैं, और अपने पैरवों को इस बात का पाबंद करता है कि किसी तरह का कोई ज़ुल्म वोह लोगों पर न करें, बल्कि मुकम्मल तौर से हुस्ने सुलूक़ और इन्साफ से काम लें। ला तुफ्सीदू फिल अर्ज़- ज़मीन में बिगाड़ पैदा न करो।
इन्नल्लाह युहिब्बुल मुक़सितीन- अल्लाह इन्साफ करने वालों को पसन्द करता है ।
क़ुरआन चाहता है कि लोग अपने खालिक़ व परवरदिगार और अपने हक़ीक़ी आक़ा के शुक्रगुज़ार हों और उसके फरमांबरदार बंदे बन कर रहें, वोह नहीं चाहता कि ज़ोर ज़बरदस्ती से अल्लाह का फरमांबरदार बनाया जाए।
अल्लाह की खुशी और मर्ज़ी जानने के लिए क़ुरआन समझना अहम ज़रूरी है। इन्सानीयत शिर्क, बिद्दत और अंधेरों में डूबी हुई थी, इन्सान, इन्सान की जान का प्यासा था, भाई भाई का गला काटता था, बेटियों को ज़िन्दा दफन कर दिया करते थे, कमज़ोर के लिए जीना मुश्किल हो गया था, तमाम रिश्ते नाते हवस के सियाह पर्दे के पीछे छिप चुके थे। ऐसे हालात में क़ुरआन की अहमीयत और बढ़ जाती है जो उस वक़्त भी हिदायत का ज़रीआ बना और जो आज हालात हैं उन में भी इसकी अहमीयत वैसी की वैसी है, जिस किसी को इस से हिदायत चाहिए वह खुली किताब है जिससे हिदायत पा सकते हैं।
हाज़रीने किराम! जब शिर्को-बिद्दत, ज़ुल्मो-हवस, मायूसी और नाउम्मीदी अपनी आखरी हुदूद पर आ पहुंची तब क़ुदरते खुदावंदी ज़ोश में आई
वोह नबियों में रहमत लक़ब पाने वाला, मुरादें ग़रीबों की बर लाने वाला
उतर कर हिरा से सवाए क़ौम आया, और इक नुस्खए कीमिया साथ लाया।
नबी सलल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़रीए से क़ुरआन को अल्लाह ने भेजा जिसने सिसकती और दम तोड़ती हुई इन्सानीयत को ज़िन्दा रखने का काम किया। क़ुरआन हर इन्सान के लिए हिदायत का आखरी पैग़ाम है और मुसलमानों के लिए खुसूसी रहनुमाई का सरचश्मा है।
क़ुरआन पाक की बताई हुई हिदायत और तालीम पर अमल कर के ही हम तरक़्क़ी कर सकते हैं। क़ुरआन की अहमीयत यह है कि अगर यह नहीं होता और जिस क़ौम ने इस पर अमल नहीं किया तो वोह बरबाद और गुमराह रह गई। मगर खुसूसी अहसान है मुसलमानों पर कि जिसे हुस्ने अख्लाक़, वालिदैन का मरतबा, अरकाने इस्लाम, नमाज़, ज़कात, रोज़ा, हज, जैसे अरकान सीखने और हश्र के रोज़ का सामान तैयार करने में मदद मिली।
यह किताब पाक आइन-ए- किरदार है
मोमिनों के हाथ में अल्लाह की तलवार है।
हुस्ने अख्लाक़ और अरकाने इस्लाम के साथ-साथ हुबुल वतनी, सियासत, मआशरत, अच्छे बूरे की तमीज़ सहीह और ग़लत को समझने का शऊर हासिल हुआ।
इस दुनिया में मांगने वाली असल चीज़ हिदायत है, मेरा रब्ब मुझ से किस तरह राज़ी होगा़ ? किन कामों से वोह नाराज़ हो जाता है? मैं दुनिया की ज़िन्दगी कैसे बसर करूं? आखिरत में कामियाबी कैसे हासिल करूं? सीधा रास्ता कौनसा है? मुझे बस रहनुमाई चाहिए। इन सवालात के जवाबात सिर्फ क़ुरआन देता है। यक़ीनन अल्लाह की रहनुमाई ही हक़ीक़ी रहनुमाई है, और बेशक यह क़ुरआन बतलाता है वोह राह जो बिल्कुल सीधी है।
इसी क़ुरआन ने हमें यह दुआ भी सीखा दी-ऐ अल्लाह! हम पर इस क़ुरआन के ज़रीए रहम फरमा और हमारे हक़ में दलील बना।
ऐसा हो ही नहीं सकता कि बंदा अल्लाह से दुआ करे और अल्लाह उसकी ज़िन्दगी को न बदले।
क़ुरआन की आज के वक़्त में भी बड़ी अहमीयत है और ता-क़यामत रहेगी भी। क़ुरआन की अहमीयत तमाम कुतुब में खुसूसी तौर पर है जिसको समझने के लिए ग़ैर मुस्लिम हज़रात ने भी कई तर्जुमे और तफासीर और रसूल सलल्लाहु अलैहि व सल्लम की सीरते मुबारका और तारीखे इस्लाम पर खिदमत अन्जाम दी है और अब भी दुनिया भर में जारी और सारी है। जिन में चंद हज़रात ये हैं-
1- क़ुरआन शरीफ- तफसीरे माजदी- नन्द कुमार अवस्थी।
2-तर्जुमा क़ुरआन- विनोद चन्द्र पाण्डे 1994
3- तर्जुमा क़ुरआन- कन्हैया लाल लखदारी 1882
4- तर्जुमा क़ुरआन- बिशनदास सिंधी में शाया हुआ
5- बंगाली तर्जुमा क़ुरआन-ग्रीस चन्द्र सैन 1881
6- पवित्र क़ुरआन दर्शन-धन प्रकाश हिन्दी में
7- पंडित रामचन्द्र दहलवी 1943 में हिन्दी तर्जुमा
8-प्रेम सरन प्रणत 1940 हिन्दी में
9-रघुनाथ प्रसाद मिश्रा हिन्दी तर्जुमा
10-सीता देवी 1914 में हिन्दी तर्जुमा
11-सीतादेवी वर्मा 1990 संस्कृत तर्जुमा
12-डाॅ.चलूकोरी नारायण राव 1930 तेलुगु तर्जुमा
13- रमेश लाकेश्वाराव 1974 तेलुगु
14-विनिकाता- तेलुगु
15 सीन.नून. कृष्णाराव मलयालम तर्जुमा
16-कोन्यून रघुवर नैयर मलयालम तर्जुमा
स्काॅलर्स
महात्मा गांधी, पण्डित जवाहर लाल नेहरू, मालिक राम, डाॅ. ताराचंद, पण्डित सुन्दर लाल, डाॅ. बी.एन. पाण्डे ।
आर.बी हरीश चन्द्र किताब का नाम-खुदा क़ुरानिक फिलॉसोफी 1979
आचार्य विनोबा भावे- द एसेंस ऑफ़ क़ुरआन 1962
ओ.पी. घाय – द एसेंस ऑफ़ क़ुरआन 1930,
कुँवर नियाज़ मुहम्मद