बीकानेर। बीकानेर में अपने ज़ाति काम से आए हुए साबिक़ मैम्बर ऑफ पार्लियामैंट (राज्यसभा) हाफिज़-ओ-मौलाना इस्लामिक पाॅलिटिसियन जनाब उबैदुल्लाह खान आज़मी जिनकी पैदाइश 11 मार्च 1949 है जो तक़रीबन आज 70 साल के हो गए । उनकी आवाज़ आज भी पार्लियामैंट के अंदर भी और पार्लियामैंट के बाहर भी हमेशा जैसे ही गूँजती रही है , आवाज़ और अंदाज़े तक़रीर आज भी वैसी ही है कहीं कोई उम्र का मामला बीच में नहीं आ रहा है।
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मौलाना उबेदुल्लाह खान आज़मी हिन्दुस्तान की जनता के ज़हनों में उस वक़्त घर कर गए जब उन्होंने शाहबानो केस को उजागर करते हुए तक़रीरें की जिन पर पब्लिक और हुकूमतों की गहरी नज़र रही है। मौलाना ने अपने सियासी सफर में काँग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी, और अब नेशनल कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधितत्व किया है, जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और झारखंड प्रदेशों में राजनैतिक औहदों पर रह कर अपनी ज़िम्मेदारी निभाई है।
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मौलाना पहले भी कई मरतबा बीकानेर आ चुके हैं और अपनी वलवलाखैज़ अंदाज़ में तक़ारीर करके सियासत में गर्माहट ला चुके हैं, मगर इस बार बीकानेर के शायरों के साथ एक अदबी मैहफिल मुनअक़िद कर और उसमें अपने अशआर सुना कर बहुत दाद लूटी। आपके ये अशआर इस तरह से है-
मैं ज़िन्दा-ए-जावेद ब-अंदाज़े दीगर हूँ,
भीगे हुए जंगल मे सुलगता हुआ घर हूँ,
तुम जिस्म के शहकार हो,मैं रूह का फनकार,
तुम हुस्न सरापा हो तो मैं हुस्ने-नज़र हूँ।
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ये अश्आर उर्दू के विद्वान मौलाना उबैदुल्लाह खान आज़मी ने होटल ताज एंड रेस्टोरेंट में अपने ऑनर में महफिले अदब की जानिए से मुनअक़िद मुशायरे में सुना कर वाह-वाही लूटी। उन्होंने आशावाद के शेर भी सुनाए-
किरणों से आस तोड़ ले,ज़र्रों को आफताब कर,
सुबह कहीं गुज़र ना जाये,सुबह के इंतज़ार में।
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प्रोग्राम की सदारत करते हुए साबिक़ मैयर हाजी मक़सूद अहमद ने कहा कि बीकानेर में उर्दू शायरी की समृद्ध परम्परा है जो अब भी कायम है। महमाने खुसूसी मौलाना अब्दुल वाहिद अशरफी ने अपना कलाम सुना कर दाद लूटी-
मैं ज़ुबाँ से क्यूँ कहूँ वीरानी ए गुलशन का हाल, पूछिये गुल से,कली से,बुलबुले-मुज़्तर से आप
वरिष्ठ शाइर ज़ाकिर अदीब ने तशनगी रदीफ़ से शेर पेश कर सराहना हासिल की। महफिले अदब के डा ज़िया उल हसन क़ादरी ने मां की अज़मत पर शेर सुनाए-
रक्खा है माँ के पांव पर अपना जो सिर ज़िया, पहले ज़मीन था यह मगर आसमाँ है अब
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